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शुक्रवार, 14 मई 2010

रिपोस्ट :- अग्निपथ (ख़ास समीर लाल समीर जी के लिए)

समीर भाई ,
बच्चन जी की यह कविता आप पर सटीक बैठती है सो पेश है .................



























वृक्ष हो बड़े भले,

हो घने हो भले,
एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;

तू न थमेगा कभी तू न मुदेगा कभी तू न रुकेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
ये महा दृश्य हैं,
चल रहा मनुष्य हैं,
अश्रु, स्वेत, रक्त से लथपथ लथपथ लथपथ ..
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.



- "बच्चन"


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आप बस युही हिंदी ब्लॉग जगत को मार्गदर्शित करते रहें ............यही दुआ है !!

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहती हो जब जगत में सुन्दर सुखद समीर!
    शुद्ध होय वातावरण, बहता निर्मल नीर!

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  2. बहुत ही बढिया शिवम भाई , बहुत ही उम्दा । आज के समय में सबसे सटीक

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  3. वाह बहुत बढ़िया रचना! लाजवाब!

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  4. अब कुछ तो शर्म करो अनुप श्कुला ओर ज्ञनादद साहब.
    शुक्ला साहब आपने मुझसे फोन पर वादा किया था कि आप ब्लागिंग को छोड़कर हिल स्टेशन पर जा रहे है लंेकिन आपने वादा पूरा नहीं किया. आपका चेला सतीश सक्सेना तो दलाली करने का आरोप झेल नहीं पाया और विधेश ृभाग रहा है.

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  5. बढिया! मन में उर्जा का संचार करती ये पंक्तियाँ.....

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  6. वाह वाह...

    एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
    अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;

    ले ली शपथ.... ले ली शपथ....

    यार वैसे बहुत कठिन है डगर ब्लाग्गर की....

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